सुविधाओं के अभाव में दम तोड़ रही हैं खेल प्रतिभाएं, पढ़ें पूरी खबर…

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Sports talents are dying due to lack of facilities

पिछले तीन वर्षों से अपने दम पर अभ्यास कर रहा है रासीसर का पवन विश्नोई

महज दो घंटे चालीस मिनट में दौड़ लगाता है 42 किलोमीटर

#KAMAL KANT SHARMA / BHAWANI JOSHI www.newsfastweb.com

बीकानेर। यूं तो प्रदेश में खेल प्रतिभाओं की कोई कमी नहीं हैं, विशेष रूप से ग्रामीण इलाकों में। लेकिन सुविधाएं नहीं मिलने से ये खेल प्रतिभाएं गांव के गलियारों में दब कर रह जाती है। ऐसी ही एक खेल प्रतिभा बीकानेर के रासीसर गांव में बिना किसी प्रशिक्षक, संसाधन व सुविधाओं के पिछले तीन वर्षों से अपने दम अभ्यास में जुटी हुई है। जी, हां, हम बात कर रहे हैं बीकानेर के रासीसर गांव में रहने वाले मैराथन धावक पवन विश्नोई की।


दुनिया भर मेें खेलों के महाकुंभ के रूप में पहचान रखने वाले ओलम्पिक में पहुंच कर अपने देश का नाम रोशन करने का सपना संजोए पवन विश्नोई एक ग्रामीण परिवार से है। पवन के पिता राजाराम विश्नोई अपने गांव से दूध इकठ्ठा करके शहर में लाकर बेचते हैं। जिससे उनके परिवार का गुजर-बसर होता है। इधर, 12वीं कक्षा तक पढ़ाई कर चुके पवन विश्नोई रासीसर गांव की सड़कों पर सुबह जल्दी उठकर 42 किलोमीटर की मैराथन दौड़ का अभ्यास करता हैे।


दरअसल, कुछ साल पहले स्टेट ओपन मैराथन में पवन विश्नोई ने भी भाग लिया और 400 मीटर की दौड़ में अच्छा प्रदर्शन किया। जिस पर आयोजकों ने उसकी प्रतिभा को काफी सराहा, इसके बाद ही पवन को धावक के रूप में पहचान बनाने का जुनून सवार हो गया और तब से ही वह लगातार दौड़ का अभ्यास करने में जुट गया। अब वह 42 किलोमीटर की मैराथन दौड़ का अभ्यास गांव के गलियारों में कर रहा है।

अभी पवन विश्नोई 42 किलोमीटर की मैराथन दौड़ में करीब दो घंटे और चालीस मिनट का समय ले रहा है। जबकि उसे न तो कोई प्रशिक्षक प्रशिक्षण दे रहा है और न ही उसके पास कोई संसाधन हैं। अभी तक जो भी उसने किया वह सुविधाओं के अभाव में अपनी मेहनत और लगन से ही हासिल किया है। अगर पवन विश्नोई जैसी खेल प्रतिभा को समय रहते कोई प्रशिक्षक, प्रायोजक और अन्य सुविधाएं सरकार या प्रशासन की ओर से मिल जाए तो निश्चित रूप से वह खेल में अपने प्रदर्शन से देश का नाम रोशन कर सकता है।

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