जगद्गुरु रामभद्राचार्यजी महाराज ने सबको सिखाया उदारता का पाठ

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Jagadguru Rambhadracharyaji Maharaj taught everyone the lesson of generosity

श्रीराम कथा और 108 कुण्डीय महायज्ञ का महाआयोजन जारी, उमड़ रहे भक्त

चतुर्थ सत्र में भगवान राम के बाल्यकाल की महिमा, धर्म की राह पर चलने का संदेश

बीकानेर। जगद्गुरु पद्मविभूषित रामभद्राचार्यजी महाराज ने रामचरित मानस श्रीराम कथा के चतुर्थ सत्र में प्रभु श्रीराम के जन्मोत्सव के बाद बालरूप की व्याख्या की। भगवान राम के यज्ञोपवित और गुरुकुल में पढऩे सहित बाल्यकाल के सभी रूपों व चरित्रों का वर्णन सुनाया।


उन्होंने कहा कि पलने में झूल रहे रामलला और राघवेन्द्र सरकार की उदारता देख सब देव, राजा, प्रजा आनन्दित हो रही थी। नाचे हनुमान नचावे रघुरैया, रानी नाचे राजा नाचे, नाचे तीनों लोक, ठुमक ठुमक पग धरत कपहिया। जगद्गुरु ने कहा कि प्रभु श्रीराम उदार हैं, उनका चरित्र उदार है, उनके भक्त उदार हैं और राम नाम भी उदार है। प्रभु की शरण में जाने वाले पाप योनि वाले भी तर जाते हैं, स्त्रियां जो संध्या नहीं कर पाती, वैश्य, शुद्र सब तर जाते हैं। जगद्गुरु ने कहा जो सनातन धर्मावलम्बी हैं उनको धर्म के साथ रहना चाहिए। धर्म से बड़ा कुछ भी नहीं, धर्म की राह पर चलने वाला ही प्रभु का प्रिय होता है। गंगाशहर-भीनासर-सुजानदेसर की गोचर भूमि में बसे सियारामनगर में इन दिनों कुम्भ सा माहौल है। 108 कुण्डीय महायज्ञ और श्रीराम कथा में सनातनी भक्तों का सैलाब उमड़ रहा है।

श्रीरामकथा की 1379वीं शृंखला, रामसुखदासजी महाराज का किया स्मरण


जगद्गुरु रामभद्राचार्यजी महाराज ने बताया कि उनके द्वारा कही श्रीराम कथा की यह 1379 शृंखला है। कथा के दौरान परम स्नेही रामसुखदासजी का स्मरण करते हुए जगद्गुरु ने कहा कि उनकी याद आती है तो मन भर जाता है, उनका विनम्र व्यक्तित्व था। राम नाम का जप उनका स्वभाव था और गौ, ब्राह्मण, संत के प्रति उनका सम्मान अनिवार्य था। जगद्गुरु ने कहा कि उन्होंने घर-द्वार छोड़ा, नौकरी छोड़ी और सब भगवान के लिए छोड़ा है, प्रभु पूजा के लिए छोड़ा है व्यक्ति पूजा के लिए नहीं छोड़ी। मुझे मेरे भगवान पर स्वाभिमान है।

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